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जानकार ख़ुशी हुई की एक ऐसी मैगज़ीन है जो नारी शक्ति को सलाम करती है : शुभा मुद्गल

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Photo Courtesy : Nilesh R

Nilesh Rao
कुछ कलाकार ऐसे होते है जो अपनी प्रतिभा से दर्शको पर हमेशा एक गहरी छाप छोड़ जाते है। संगीत की दुनिया की एक ऐसे ही हस्ती है जिन्होने दर्शको का मनोरंजन ‘आयो रे म्हारो ढोलना’, ‘अब के सावन’, ‘प्यार के गीत सुना जा रे’ जैसे लोकप्रिय गीतों से किया है।
मुंबई में आयोजित एक म्यूजिक फेस्टिवल के दौरान सिटी वुमन मैगज़ीन ने सुप्रसिद्ध गायिका शुभा मुद्गल से ख़ास बातचीत कि. प्रस्तुत है इंटरव्यू के कुछ अंश:
आप इस शो में क्या परफॉर्म करने वाली है, अपने परफॉरमेंस के बारे में कुछ बताए?
ये शो मुंबई में दूसरी बार हुआ है मगर मैंने इसमे पहली बार भाग लिया था। इस शो में हमने फोक म्यूजिक को फ्यूज़न अरेंजमेंट के साथ प्रस्तुत किया। क्यूंकि ये लोक संगीत का कार्यक्रम है और मेरी  इलाहबाद में परवरिश हुई है तो वह की कुछ ख़ास चीज़ें है उनको आज के अंदाज़ में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है हमने।
आपका और आपके परिवार का बड़ा गहरा रिश्ता रहा है म्यूजिक से, आपने म्यूजिक सीखा भी है, पर आज के दौर का म्यूजिक आपको कैसा लगता है? 
मेरा ऐसा मन्ना है की हम एक जैसा म्यूजिक नहीं बनाते, हर तरह का म्यूजिक एक्सिस्ट करता है। अलग – अलग लोग अलग-अलग तरीके का म्यूजिक सीखते है, उसकी पढाई करते है और उसे प्रस्तुत करते है। कुछ लोग बहुत प्रतिभाशाली होते है और कुछ नहीं। हमारा देश इतना बड़ा है की हर किसी के लिए यहाँ दर्शक मौजूद है। अगर हम इम्प्रूवमेंट की बात करे तो बहुत से दिग्गज कलाकार भी अपने आपको इम्प्रूव करना चाहते है। यहाँ इम्प्रोवेर्मेंट का स्कोप बहुत है, मगर हम ये जनरलाइस नहीं कर सकते की आज का म्यूजिक अच्छा है या बुरा। अच्छा भी है और मेडिओक्रे भी है। हम सब आर्टिस्ट्स प्रयास करते है की हमारी काबिलियत, हमारी स्टडी, हमारा रिसर्च, हमारा रियाज़ हमें हमेशा आगे ले जाए। ये सबके अलग अलग म्यूजिक परेफरेंस का सवाल है कुछ लोगो को किसी प्रकार का संगीत पसंद आता है किसी और को कोई दूसरे प्रकार का। हम तो म्यूजिक के छात्र है और हम हमेशा पिछले दौर का म्यूजिक सुनते है, उस ज़माने क गुरुओ से सीखने की कोशिश करते है और उसने प्रेरणा लेते है।
आपने अलग अलग तरग का म्यूजिक सीखा है, ठुमरी भी एक म्यूजिक का प्रकार है जो आपने सीखा है परन्तु आजकल ठुमरी सुनने को नहीं मिलती, आपका क्या कहना है इस बारे में ?
पहले ज़माने में कई दिज्जग महिला म्यूजिक शिक्षिका ठुमरी सिखाती थी। उन्होने संगीत में महारत हांसिल थी और उनको नृत्य में भी काफी रुचि थी । जैसे जैसे समय गुज़रता गया वैसे वैसे ठुमरी सिखाने वाले भी बहुत कम हो गए थे । ऐसा अक्सर होता है की जो लोग ख्याल गाते है वो लोग ठुमरी भी गा लेते है. ठुमरी में स्पेशलाइस करने वाले कम ही रह गए है । समय के साथ इतने परिवर्तन हो रहे है की मुझे लगता है की शायद आने वाले समय में हमें एक नए अंदाज़ की ठुमरी सुनने का मौका मिले।आजकल हर दिन नए नए सिंगर्स की एंट्री होती है आप इस ट्रेंड को कैसे देखती है?मैने ऐसा ऑब्सेर्वे किया है की कम्युनिकेशन इतना आसान हो गया है की सिंगर्स आजकल आपको किसी भी माध्यम से मिल सकते है। हमने कभी नहीं सोचा था की टीवी और रेडियो के माध्यम से हमें इतने अच्छे सिंगर्स सुनने को मिलेंगे। हुनर हमेशा से ही हमारे आजु बाजु मौजूद था इंटरनेट के आने से अलग अलग आर्टिस्ट्स दुनिया के सामने प्रस्तुत होने लगे है। जहा तक रोज़ नए लोगो के आने की बात है यह तो हर इंडस्ट्री में होता है चाहे बिज़नेस फील्ड हो या मीडिया। मुझे नए लोगो से ज़रा भी शिकायत नहीं है अगर टैलेंटेड लोग आ रहे है तो बहुत अच्छी बात है। दर्शक उस टैलेंट को एक्सेप्ट करते है या नहीं ये एक महत्वपूर्ण बात है।
आजकल बहुत सारे बच्चे भी सिंगिंग रियलिटी शोज में पार्टिसिपेट करते है, क्या ये उनके बचपन के साथ जस्टिस है ? 
ये तो बहुत ही मुश्किल सवाल है मगर मेरा मानना है की ऐसे शोज में बच्चो के पेरेंट्स भी उन क साथ शामिल होते है तो इस बात का फैसला वो लोग ज़्यादा अच्छे से कर सकते है की उनके बच्चो के लिए क्या अच्छा है। मगर मैं इस सिलसिले में एक बात कहना चाहती हूँ, जो म्यूजिक बच्चे पेश करते है । ये बच्चे बहुत टैलेंटेड है और बहुत अच्छा गाते है। किन्तु ये बच्चे ऐसे गाने गाते है जो बड़ों को गाने के लिए बनाये होते है। हमने ठुमरी के बारे में बात कर रहे थे कुछ समय पहले, मेरा ये भी मानना है की पहले बच्चो के जो गीत बनाए जाते थे वैसे गीत अब हमें नहीं सुनने मिलते है। अगर आप भारत में देखे तो हर प्रान्त, हर प्रदेश में अलग अलग किस्म के गाने होते है। वो गाने हम क्यू नहीं बना पा रहे है जो स्पेशली बच्चे गा सके। एक बात सोचने लायक है कि हम बच्चो से ऐसे गाने क्यों गवा रहे है जिनका उन्हें एहसास ही नहीं है।
आप अंडर स्कोर रिकार्ड्स डॉट कॉम से भी जुडी हुई है, यह प्लेटफोर्म कैसे इंडिपेंडेंट आर्टिस्ट्स की मदद करता है?
पहले ऐसा होता था कि अगर एक आर्टिस्ट को अपना म्यूजिक रिलीज़ करना होता तो वह म्यूजिक कंपनी के पास जाता था। म्यूजिक कंपनी उसके दो गानों में से एक ही सेलेक्ट करती। म्यूजिक कंपनी ही निर्णय करती थी कि उनके लिए क्या बिक सकता है और क्या मार्केटेबल है। मैं एक बात बताना चाहती हूँ कि जब हम रिकॉर्ड करते है वो एक डॉक्यूमेंट बन जाता है। इसमे आप अपना टैलेंट दूसरो को सुना सकते है और कही न कही आप के जाने के बाद वह आपकी यादगार बन जाता है। जब मैने और मेरे हस्बैंड अनीश प्रधान ने अंडर स्कोर रिकार्ड्स डॉट कॉम की स्थापना 2003 में कि थी उसका एक ही उद्देश्य था और वो था सेल्फ पब्लिशिंग। ये इंटरनेट आने की कारण से संभव हो पाया है की एक आर्टिस्ट खुद अपनी टर्म्स एंड कंडीशंस पर अपना रिकॉर्ड बनाए और बेच सके। अगर आर्टिस्ट चाहता है कि उसकी CD रुपये 2000 में बिके तो वो इसका मूल्य भी वही चुन सकता है क्यूंकि वो लिमिटेड एडिशन CD’s होंगी। अगर वो चाहे तो इस CD के साथ एक अच्छी सी किताब मुहैया करवा सकता है जिसमे उस म्यूजिक जेनर के बारे में इनफार्मेशन उपलब्ध कराई हो। इस तरह अंडरस्कोर रिकार्ड्स के माध्यम से एक आर्टिस्ट अपना खुद का म्यूजिक और CD बेचते समय अपनी शर्ते खुद तय कर सकता है। हमारा बहुत बड़ा सौभाग्य है की म्यूजिक के महारथी कलाकार भी अंडरस्कोर रिकार्ड्स के जरिये अपना म्यूजिक डिस्ट्रीब्यूट कर पाए है। हमें बहुत ख़ुशी है इस बात की। मैं एक और बात कहना चाहती हूँ कि यह प्लेटफार्म न केवल इंडियंस बल्कि नॉन-इंडियंस के लिए भी खुला है जो इंडियन म्यूजिक परफॉर्म करते है।
दिवाली का त्यौहार आप किस प्रकार मानती है?
मुझे लगता है कि हमारे शहरों में प्रदूषण बहुत बढ गया है। हमें इस बात पर बहुत ध्यान देना चाहिए। मैं पटाखे नहीं जलाती मैं अपने परिवार के साथ मिलकर शांति और सिम्पलिसिटी से दीपावली मनाती हूँ।
सिटी वुमन मैगज़ीन के रीडर्स को आप क्या सन्देश देना चाहती है?
मेरा ऐसा मानना है कि मुझे अभी भी बहुत कुछ सीखना  है उन महिलाओ से जो आपकी मैगज़ीन में फीचर हो चुकी है। मैं आपको बहुत धन्यवाद देती हूँ की आपने मुझे इन महिलाओ में शालिम किया । मुझे यह जानके बहुत ख़ुशी हुई की एक ऐसी मैगज़ीन है जो नारी शक्ति को सलाम करती है।