विश्व एड्स दिवस : खौफ नहीं, जागरूकता है जरूरी

विश्व एड्स दिवस : खौफ नहीं, जागरूकता है जरूरी

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Photo Courtesy : Decaturish
Ashu Das
हर साल 1 दिसंबर को हम देखते हैं कि काफी लोग रेड रिबन लगाकर घर से निकल रहे हैं। ऑफिस में, घर में, कॉलेज में कई प्रोग्राम आयोजित होते हैं। 1 दिसंबर को दुनियाभर में एड्स दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को एड्स के प्रति जागरूक करना है।
इस दिन की शुरुआत 1 दिसंबर 1988 से हुई थी। इसके जरिए एड्स पीड़ितों के लिए धन इकट्ठा करना, लोगों को इसके प्रति सावधान करना और एड्स से जुड़े मिथकों को दूर करना है।
एड्स को शुरू में होमोसेक्शुअल पुरुषों की बीमारी माना जाता था  तब इसे गिर्ड यानि गे रिलेटिड इम्यून डिफिशियंसी कहा जाता था। इसे एड्स नाम सन 1982 में दिया गया। व्यक्ति को सीधे एड्स नहीं होता। एड्स एचआईवी के संक्रमण के बाद की स्थिति है। एड्स खुद कोई बीमारी नहीं है। लेकिन इससे पीड़ित व्यक्ति के शरीर में जीवाणु-विषाणुओं से होने वाली बीमारियों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है। ऐसे में व्यक्ति को सर्दी से लेकर टीबी तक हो जाती है। इनका इलाज नामुमकिन हो जाता है।
एचआईवी को एड्स में तब्दील होने में आठ से दस महीने या इससे भी अधिक का समय लग जाता है। एक बार एड्स होने पर जीवन में इसके ठीक होने के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट की माने तो एड्स का पहला केस 1981 में सामने आया था और तब से लेकर अब तक करीब 39 मिलियन लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में केवल 2011 से 2014 के बीच ही डेढ़ लाख लोग इसके कारण मौत का शिकार हुए।
भारत में भी एड्स ने अपने पैर पसार रखे हैं। इसके पीछे कई कारण हैं जैसे-एचआईवी पॉजीटिव लोगों के साथ भेदभाव करना, लोगों में जागरूकता की कमी होना, लोगों के मन में एड्स को लेकर तरह-तरह के भ्रम होना, लोगों का असुरक्षित यौन संबंध बनाना ऐसे ही और भी कारण हैं। भारत जैसे घने आबादी वाले देश में एड्स ग्रसित मरीजों की अधिक संख्या का कारण है लोगों का लापरवाही युक्त व्यवहार। यहां लोग सब कुछ जानते हुए भी अंजान बने रहते हैं।
UNAIDS की एक रिपोर्ट के हिसाब से कुल 35 मिलियन HIV/AIDS पीड़ित लोगों में से 19 मिलियन लोगों को यह पता नहीं हैं कि उनमें यह वायरस है। WHO के अनुसार सब सहारा अफ्रीका में HIV के सबसे ज्यादा मरीज यानी 24.7 मिलियन मरीज हैं और यह आकंडा पूरी दुनिया में पाए जाने वाले मरीजों का 71 प्रतिशत है।
भारत के आकड़ों की बात की जाये तो यहां 2.1 मिलियन लोग HIV से पीड़ित हैं और इस आंकडे के साथ पूरी दुनिया में पाए जाने वाले मरीजों वाले देशों में भारत का तीसरा स्थान   है।
UN की एक रिपोर्ट की माने तो एशिया-पेसिफिक रीजन में जितने HIV के मरीज पाये जाते हैं उसके 40 प्रतिशत मरीज भारत में हैं।
एचआईवी को लेकर एक चौंकाने वाला तथ्य यह भी सामने आया है कि विश्व में एचआईवी से पीड़ित होने वालों में सबसे अधिक संख्या किशोरों की है। यह संख्या 20 लाख से ऊपर है। यूनिसेफ की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2000 से अब तक किशोरों के एड्स से पीड़ित होने के मामलों में तीन गुना इजाफा हुआ है।
भारत में HIV इंफेक्शन के नए मामलों में 19 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है पर फिर भी यहां नए मरीज का प्रतिशत एशिया-पेसिफिक रीजन में पनपने वाले नए मामलों का 38 प्रतिशत है। भारत में HIV के करीब 64 प्रतिशत मरीजों को एंटीरेट्रोवियल थेरेपी से इलाज नहीं मिल पाता। भारत में AIDS से होने वाली मौतों में 2005 और 2013 के बीच 38 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है ।
सेक्स वर्कर महिलाओं में होने वाला HIV इंफेक्शन 10.3 प्रतिशत से 2.7 प्रतिशत पर आ गया है पर यह प्रतिशत आसाम, बिहार और मध्यप्रदेश में बढ़ा है। एड्स की अभी तक कोई दवा नहीं बनी है। इससे से बचाव ही एड्स का इलाज है।