निर्भया की मां : मां अपनी बेटी को, कमजोर समझने की...

निर्भया की मां : मां अपनी बेटी को, कमजोर समझने की शिक्षा नहीं दे

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Nirbhaya's Mother Smt. Asha Devi
Ashu Das
16 दिसंबर यही वो तारीख थी जब निर्भया हैवानों की दरिदंगी का शिकार हुई। निर्भया बेशक से आज दुनिया में ना हो लेकिन उसके जज्बे को जिंदा रखा है उसकी मां ने। 5 साल से बेटी के गुनहगारों के लिए फांसी की सजा की मांग कर रही निर्भया की मां आशा देवी। देश की जनता बेशक से उनके साथ खड़ी रही हो लेकिन समाज उनके साथ कभी खड़ा नहीं हुआ। 16 दिसंबर की उस काली रात को याद करते हुए आशा देवी ने सिटी वुमन मैगजीन के साथ खास बातचीत की।
आशा देवी ने कहा कि 5 साल पहले उन्होंने एक निर्भया को खोया था लेकिन अब उनका संघर्ष रोजाना हैवानियत का शिकार हो रही उन बच्चियों के लिए है। कानून व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि अब तक जो बदलाव आए हैं वो काफी नहीं है। वो कहती हैं कि मीडिया और जब तक आंदोलन चलाए गए सरकार का ध्यान इस ओर था लेकिन जैसे ही आंदोलन खत्म हुए तो सबका ध्यान भी भंग हो गया।
निर्भया के आरोपियों को मिली सजा के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा कि बेशक से उन्हें सजा ए मौत का ऐलान हो चुका हो, पर अब भी वो जीवित हैं। नाबालिक आरोपी को मिली रिहाई पर नाराजगी जाहिर करते हुए आशा जी ने कहा कि इससे हर युवा में एक नकारात्मक संदेश जा रहा है। आज हर नाबालिक के दिमाग से इस बात का खौफ खत्म हो चुका है कि अगर वो इस तरह की घिनौनी वारदात को अंजाम देता है, तो उसे कुछ दिनों बाल सुधार गृह में रखा जाएगा और कुछ दिनों बाद ही वो आजाद हो जाएगा। आशा देवी का कहना है कि न्यायप्रणाली को ऐसा कानून बनाने की आवश्यकता है जिससे कोई भी शख्स किसी को अपनी हवस का शिकार बनान से पहले 500 बार सोचे। सोचना तो दूर ऐसा ख्याल आते ही किसी भी दरिंदों की रूह भी कांप जाए।
सिटी वुमन मैगजीन से खास बातचीत में आशा देवी ने मासूम बच्चियों के साथ हो रही रेप की वारदातों पर रोकथाम लगाने पर कहा कि कानून को बदलने के साथ-साथ उसे जमीनी स्तर पर लागू करने की आवश्यकता है। जब 2, 3, 5 साल की बच्चियों के साथ रेप की वारदात होती है तो कोर्ट में केस जाता है और तारीख पर तारीख दी जाती है, जिससे आपराधियों के हौंसले बुलंद होते हैं।
मानसिकता पर सवाल उठाते हुए आशा देवी कहती हैं कि जो लोग इस तरह की वारदात को अंजाम देते हैं सिर्फ उनकी नहीं बल्कि समाज की भी मानसिकता खराब है। जब बेटी की आबरू पर बन आती है तो परिवार उसे बदनामी के काले दाग से बचाने के लिए चुप हो जाता है। अब वो वक्त आ गया है कि जब परिवार को ये बात समझनी होगी कि रेप से उनकी बेटी की आबरू गई नहीं है, उनकी मानसिकता से इसे खत्म करना होगा। पुरुष के मस्तिष्क में ये बात घुस चुकी है कि वो जो चाहे कर सकता है।
राजनेताओं पर महिलाओं पर आपराधिक बयान पर बोलते हुए आशा देवी ने कहा कि सिर्फ राजनीति करने से कुछ नहीं होगा। राजनेता समस्या का हल निकालने की बजाय अपने-अपने शासनकाल का बखान करने में लगे हुए होते हैं।
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा दुष्कर्म पीड़िताओं को बंदूक के लाइसेंस जारी करने के प्रस्ताव पर बोलते हुए आशा देवी ने कहा कि एक बार फिर प्रशासन महिलाओं के कंधे पर बंदूक तान कर अपनी जिम्मेदारियों से पीछे भाग रहा है।
अगर एक महिला बंदूक साथ लेकर चलती है और किसी दरिंदे पर गोली चलाती है तो उस पर मर्डर का चार्ज लगा दिया जाएगा। इससे समस्या का हल नहीं होगा, प्रशासनिक व्यवस्था को पल्ला झाड़ने की नहीं बल्कि ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
महिलाओं को सशक्त करने के बारे में बोलते हुए आशा देवी कहती हैं कि किसी भी मां को अपनी बेटी को, कमजोर समझने की शिक्षा नहीं देनी चाहिए। लड़कियों को खुद पर भरोसा करना चाहिए, ना कि अपने परिजनों और अपने रिश्तेदारों पर। 21वीं सदी की नारी को ये बात समझने की आवश्यकता है कि उसे अपना हक किसी से मांगना नहीं है बल्कि खूब पढना है और आगे जाना है, मंजिलों को छूना है अपनी राहों में किसी भी कठिनाई को बाधा नहीं बनने देना है। निर्भया की माँ आशा देवी आज हर बेटी की मां के लिए प्रेरणा हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए उसे रूकना नहीं समाज के आगे झुकना नहीं है।