महिला को सशक्त ही नहीं आत्मनिर्भर होना जरूरीः गीता

महिला को सशक्त ही नहीं आत्मनिर्भर होना जरूरीः गीता

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एक औरत के पास वो शक्ति है जो दुनिया में हर ताकत को छोटा साबित कर सकती है। घर का काम हो या फिर बिजनेस की भागदौड़ वो अकेले सब कुछ करने में सक्षम है। वो ना सिर्फ खुद को हिम्मत दे रही है बल्कि समाज को सशक्त करने के लिए प्रेरित कर रही है। 21वीं शताब्दी में वो ये बात जान चुकी है कि 6 फीट घूंघट के दायरे में नहीं रहना है। वह एक ऐसी भी महिला है जोकि आज हर महिलाओ को आगे बढ़ते रहने की सुदृड़ (मजबूत) इक्छा शक्ति प्रदान करने के साथ महिलाओ को घूंघट की मर्यादा को धयान में रखकते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा समाज को दे रही है।
खुद को प्रेरित करते हुए वो खुद का बिजनेस चलाते हुए अब एक इंटरप्रेन्योर बनने के लिए तैयार हैं। हर इंटरप्रेन्योर की तरह इस महिला उद्यमी का सफर भी रेत के उस गर्म हवाओ के हथकोल कहते हुए और उस रेतीले टीलो में पाओ जमकर चलना था जहा पानी के बगेर एक वृक्ष भी नहीं पनपता। राजस्थान की जन्मी और पाली बड़ी गीता मालवलिया की कहानी हर महिला को आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा दे रही है। राजस्थान की कहानी किसी से नहीं छुपी हुई है, गीता की मांगों में उस वक्त सिंदूर का लाल रंग चढ़ा जिस वक्त उन्हें इसका अर्थ तक नहीं पता था।
कच्ची उम्र में शादी होने के बाद माता पिता का साथ छूटना भी काफी दर्द नाक और हिम्मत तोड़ देने वाला था पर साथ ही दिल्ली जैसे एक बड़े शहर के एक ऐसे परिवार में अपनी जगह बनाने की चुनौती थी। बड़े शहर के परिवार में तब तक महिलाओं को घूंघट की मर्यादाओं के पर दुनिया देखने का हक़ नही होता था।
जब घर के कर्ता-धर्ता के कुछ न कर पाने के कारण तीन तीन बच्चों की पूरे तरह से ज़िम्मेदारी के साथ उनके रहन सहन, खान पान, रख रखाव के साथ जो अपने न पढ़ पाने का मलाल भी था उसी के कारन तीनो को शिक्षित करने की दिरिढ़ ईक्षय और हिम्मत के साथ घूंघट की मर्यादा को धयान रखते हुए अपने घर परिवार को जहा एक तरफ मजबूती दी तो दूसरी तरफ पहचान बनने की इक्छा इन सबको देखते हुए इन्होंने सबसे पहले सिलाई बुनाई कर अपने बच्चो को स्कूल 6 क्लास में एक ऐसे स्कूल में एडमिशन कराया जहा उस समय तक लोगों चाहते थे।
समाज की की आलोचना के आगे घुटने का टेकते हुए गीता ने छोटी से दुकान के जरिये अपने परिवार को सहारा दिया। आज गीता वो मुकाम हासिल कर चुकी हैं जहां पर वो दूसरी महिलाओं को काम करने के लिए प्रेरित कर रही हैं। कई महिलाओ को नए बिज़नेस खोलने के साथ अपने पैरो पर ड़े होने के आईडियादे रही है और अब यहाँ एक दूध की डेयरी चला रही हैं। इन सबके साथ गीता मालवलिया अब एक इंटरप्रेन्योर बनने जा रही है यह जयपुर में एक कॉफ़ी विथ स्टडी, स्वच्छ भारत अभियान और थीम बेस कैफ़े शुरू करने जा रही है।
सेविंग है जरूरी
घरेलू महिलाओं के बचत पर सिटी वुमन मैगजीन से बातचीत करते हुए गीता का कहना है कि ये वो जड़ है जिसे मजबूत करना आवश्यक है। हर महिला को कुछ पैसे बुरे वक्त के लिए बचा कर रखना जरूरी है, क्योंकि उसका पति जब घर पर नहीं होगा और इस बीच कोई उसे इमरजेंसी आती है तो वो किसी पर टिकी हुई नहीं रहेगी। महिलाओं को बचत की टिप्स देते हुए गीता का कहना है कि गृहस्थी चलाने केलिए जितने पैसों की आवश्यकता होती है, उसमें से एक हिस्सा चाहे वो बेशक हर माह 500 से 1000 ही हो बचाने चाहिए।
गीता मालवलिया “समाज महिलाओ के जरिये ही सुखी और समृद्ध बन पता है महिलाओ हो या कोई अन्य व्यक्ति हिम्मत और इक्छा शक्ति होने भर से ही समाज और अपने परिवार को मजबूती दे सकती है।”